*विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन*
श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय नईगंज जौनपुर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें डॉक्टर हरिनाथ यादव ने बताया विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, हर साल 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों का समर्थन करने और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार के लिए मनाया जाता है। यह दिन मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को खत्म करने और सभी के मानसिक कल्याण को प्राथमिकता देने का एक अवसर है।
दिवस के मुख्य उद्देश्य:
जागरूकता बढ़ाना: दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों और मानसिक स्वास्थ्य की importance के बारे में लोगों को शिक्षित करना।
समर्थन को बढ़ावा देना: उन लोगों के लिए समर्थन और वकालत को प्रोत्साहित करना जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
कलंक को दूर करना: मानसिक स्वास्थ्य विकारों के बारे में नकारात्मक धारणाओं को चुनौती देना और उन पर खुलकर बात करने के लिए एक मंच प्रदान करना।
सेवाओं तक पहुंच: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सहायता तक लोगों की पहुंच में सुधार के लिए प्रयासों को बढ़ावा देना।
आज, हम सब यहाँ केवल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिए नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सच्चाई को स्वीकार करने के लिए एकत्रित हुए हैं। वह सच्चाई यह है कि हमारा मन हमारे शरीर का सबसे शक्तिशाली और सबसे ज़रूरी अंग है।
एक मनोचिकित्सक के तौर पर, मैं आपसे पूछता हूँ: क्या हमने कभी अपने मन की सेहत को उतना ही ध्यान दिया है, जितना हम अपने दिल या फेफड़ों को देते हैं?
यह वह सवाल है जिसका जवाब आज हमें बदलना है।
बीमारी नहीं, बल्कि कलंक है असली समस्या
सबसे बड़ी बाधा जो हमें रोकती है, वह बीमारी नहीं, बल्कि उससे जुड़ा कलंक (Stigma) है।
सोचिए: अगर किसी को टाइफाइड हो जाए, तो वह डॉक्टर के पास आता है। लेकिन अगर कोई हफ्तों तक उदासी में डूबा रहे, तो अक्सर वह चुप रहता है, इस डर से कि लोग उसे "कमज़ोर" समझेंगे।
मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ: मानसिक बीमारी कोई कमज़ोरी नहीं है, यह एक मेडिकल कंडीशन है। यह इलाज योग्य है, और उपचार की उम्मीद हमेशा मौजूद है। हमारा विज्ञान, हमारी थेरेपी, और हमारी दवाएँ—ये सब ठीक होने के लिए हैं।
स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन का समीकरण
अब उस सबसे ज़रूरी चीज़ पर आते हैं जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
अगर मन थका हुआ है, तो शरीर में ऊर्जा नहीं होगी। और अगर आप शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं, तो आपका मन कभी पूरी तरह शांत नहीं हो सकता।
यही वह जगह है जहाँ मोटिवेशन काम आता है। मैं आपसे सिर्फ दवाई लेने के लिए नहीं कह रहा। मैं आपसे कह रहा हूँ कि:
"डर को जीतो, खुलकर बोलो। जीवन एक दौड़ है, दिमाग को मज़बूत रखो।"
खुद के लिए समय निकालें: रोज़ 20 मिनट टहलें, योग करें, या कोई भी शारीरिक गतिविधि करें। यह आपके मन को ताक़त देने का सीधा तरीका है।
तीन कदम जो जीवन बदल सकते हैं (कॉल टू एक्शन)
मैं आपसे केवल तीन चीज़ें करने का आह्वान करता हूँ:
बोलना शुरू करें: अगर आप दर्द में हैं, तो चुप न रहें। अपने डॉक्टर, परिवार, या किसी भरोसेमंद दोस्त से बात करें। यह रिकवरी की ओर आपका पहला और सबसे बड़ा कदम होगा।
सुनना शुरू करें: अपने आस-पास देखें। कोई चुप है, तो उससे पूछें: "क्या तुम ठीक हो? मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
मदद लें: मदद मांगना बहादुरी है, कमज़ोरी नहीं। याद रखें: "इलाज संभव है। मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें।"
हम सभी स्वास्थ्यकर्मी—डॉक्टर, नर्स और स्टाफ—मिलकर यह संकल्प लेते हैं कि हम हमेशा आपके समर्थन में खड़े रहेंगे।
आज, हम सब एक साथ यह दोहराते हैं:
"मन का इलाज भी ज़रूरी है, चुप्पी तोड़ो, मदद लो। आज की जागरूकता, कल का बेहतर जीवन!"
अपने मन को ताक़त दो, अपने शरीर को ताक़त दो, और जीवन की हर चुनौती को जीतो।
बहुत-बहुत धन्यवाद। जय हिन्द।
संगोष्ठी में हरि नाथ यादव सहित अस्पताल के समस्त स्टाफ, मनोवैज्ञानिक श्रीमती प्रतिमा यादव, डॉक्टर सुशील यादव, मरीज एवं उनके परिजन उपस्थित रहे ।