यूपी की सियासत: आज़म खान की जेल से रिहाई के मायने,कहीं राजनीतिक समीकरण दरकने की आहट तो नहीं!
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कैलाश सिंह-
राजनीतिक सम्पादक
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-23 महीने बाद जेल से रिहा होते ही मीडिया के सवालों के जवाब में उनका यह कहना कि 'हम ठहरे छोटे आदमी, बड़े लोगों को रिसीव करने आते हैं बड़े नेता, यह शब्द सपा सुप्रिमों अखिलेश यादव को अंदर तक इतना झकझोर दिया कि उन्होंने आनन- फानन आज़म से मिलने की तारीख आठ अक्टूबर फ़िक्स कर ली, इसके अगले दिन सुश्री मायावती की रैली भी अरसे बाद निर्धारित हैl यही दो तारीखें खोलेंगी सियासी पत्तेl
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लखनऊ, (तहलका न्यूज नेटवर्क)l मुख्तार अंसारी की मौत के कुछ दिनों बाद उनके भाई अफ़ज़ाल अंसारी का यह कहना कि ' पिछले तीन दशक से मुसलमान यादव को मुख्यमन्त्री बनाने में जुटा है और दरी बिछा रहा है, क्या कभी यादव भी किसी मुस्लिम को सीएम न सही, डिप्टी सीएम बनाने में जुटेंगे? चार माह पूर्व दिये बयान में किया गया यह सवाल दिन बीतने के साथ निरंतर बड़ा होता जा रहा है! मुस्लिम समुदाय के जेहन में यह बात बैठ गई है, लेकिन उनका दर्द भी यही है और फिलवक़्त कोई इलाज भी नहीं दिख रहा हैl
दरअसल यूपी की सियासत की समझ रखने वाले लोग अफ़ज़ाल अंसारी के इस सवाल को आज़म खान के जवाब से भी जोड़कर देख रहे हैंl जेल से रिहा होने के बाद आज़म खान के काफिले में दर्जनों गाड़ियों के अलावा हजारों की भीड़ देख मीडिया की तरफ़ से उछले सवाल- समाजवादी पार्टी की तरफ़ से कोई बड़ा नेता आपको रिसीव करने क्यों नहीं आया? इसके जवाब में 'आज़म का यह कहना कि हम छोटे हैं, बड़े नेता होते तब न बड़े लोग रिसीव करने आतेl'
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आज़म खान 23 महीने जेल में रहे, इस दौरान सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव तो दूरी बनाए ही थे, उनके परिवार का कोई अन्य सदस्य जैसे शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव, धर्मेंद्र यादव आदि में से किसी ने भी उन आज़म खान से मुलाकात नहीं की जिसने अपने जीवन का बेहतरीन हिस्सा सपा और मुलायम सिंह यादव परिवार के लिए खपा दिया, वही परिवार उनसे करीब दो साल से दूरी बनाए हुए है तो इसके मायने भी कई ऐंगल से सियासत में रुचि रखने वाले निकाल रहे हैंl
इससे इतर, उस दिन विधानसभा में हो रही बहस पर गौर करें जिसमें बार- बार अखिलेश यादव द्वारा योगी आदित्यनाथ की सरकार में कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किये जा रहे थे, तब जवाब में सीएम योगी ने कहा 'हम माफिया को मिट्टी में मिलाकर ही दम लेंगेl' इसके बाद अतीक अहमद की पत्नी व अन्य को कहते सुना गया कि अखिलेश यादव के बार -बार उकसाने पर योगी को गुस्सा आयाl दूसरी ओर इस घटनाक्रम के भी मायने निकाले जा रहे हैं कि जिन आज़म खान को 23 माह जेल में रखने को योगी सरकार ताबड़तोड़ मुकदमों की फेहरिस्त लगाए पड़ी थी, क्या सारे उपाय कम पड़ गए या फ़िर 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से एक साल पूर्व मुख्य विपक्षी दल सपा के चुनावी समीकरण को ध्वस्त करने के लिए भाजपा हाई कमान की नई चाल है!
कई अखबारों में संपादक रहे राजनीतिक विश्लेषक एस. पांडेय कहते हैं कि जेल से रिहाई के दौरान आज़म खान की टिप्पणी ने बसपा और कांग्रेस के लिए जहां नया रास्ता खोल दिया है,वहीं सपा को हिलाकर रख दिया हैl भाजपा के लिए तो हर स्थिति में बल्ले- बल्ले हैl यदि उन्होंने किसी दल में जाने की बजाय अपना मोर्चा बना लिया तो भी रामपुर की अपनी सीट वह जिता ही लेंगे, साथ ही मुस्लिम वोटरों को विभक्त करके सपा के मुख्य विपक्षी दल के दर्जा वाली कुर्सी भी खींच सकते हैंl यदि बसपा से कोई बड़ा ऑफर मिला और वह उधर चले गए तो 'दलित और मुस्लिम' वाला समीकरण सभी दलों पर भारी पड़ेगा l
निष्कर्ष यह कि आज़म खान का जेल से बाहर आते ही दिया गया बयान यूपी की सियासत में भूचाल लाने की आहट का संकेत ही नहीं, खुद उनकी राजनीतिक हैसियत वाली ताकत को भी दर्शाता हैl उनका बयान खुद के आत्म विश्वास और मौजूद सियासी ज़मीन का भी एहसास कराता हैl इतना तय माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में खासकर विपक्षी दलों के राजनीतिक समीकरणों के दरकने की आहट महसूस होने लगी हैl इसकी परतें आठ- नौ अक्टूबर से खुलने लगेंगीl पहले दिन सपा सुप्रिमों से सार्थक बात हुई तो कई संभावित शर्तों पर होगी जिसमें उनकी बहू भी राजनीति में कदम रख सकती हैं! यदि बात बिगड़ी तो अगले दिन बसपा की अरसे बाद हो रही रैली से भी बड़े संकेत मिलेंगेl,,,,,, क्रमशः