मेडिकल अपराध: यूपी के शहरों में अब 'आवास' और बेसमेंट भी हो रहे अस्पताल में तब्दील!
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केदार नाथ सिंह-
(सलाहकार संपादक)
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-जौनपुर की बानगी: यहां मेडिकल हब और कथित इंसानी स्लाटर हाऊस के नाम से कुख्यात नईगंज को मात देने लगा रसूलाबाद मोहल्ला, अब मानक दर किनार, कमरों में 'अस्थाई ऑपरेशन थियेटर' का चलन बढ़ाl स्वास्थ्य विभाग की नौकरशाही से इनको मिलती है शहl
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लखनऊ/ जौनपुर, (तहलका न्यूज नेटवर्क)l आमजन की जिंदगी बचाने के नाम पर निजी अस्पतालों के जरिये यूपी के विभिन्न शहरों में जो खेल चल रहा है उससे अब कोई अछूता नहीं रह गया हैl इसके पीछे बरगद सरीखे ऊपर से चली भ्रस्टाचार की जड़ (बेल बनकर) नीचे तक फैल चुकी हैl कथित तौर पर मोटी रकम देकर जिलों में तैनाती पाने वाले स्वास्थ्य विभाग के चिकित्साधिकारी उगाही के लिए खेलते हैं तकनीकी खेल, नहीं समझ पाते हैं प्रशासनिक नौकरशाह, इसका ठोस उदाहरण जौनपुर और बाराबंकी में मौजूद हैंl पिछले महीनों आयुष चिकित्सकों की भर्ती में जुगाड़ के साथ लाखों का वारा- न्यारा हुआl यही हाल मेडिकल कॉलेजों में भी चल रहा हैl इसकी पोल तो आयुष चिकित्सक भर्ती न पाने वाले आवेदकों ने खोल दीl
दरअसल इसी साल पिछले महीनों जौनपुर में आयुष चिकित्सकों की रिक्तियों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू होते ही जुगाड़ (ऊँची पहुँच यानी सोर्स) लगाने को आवेदकों ने प्रदेश की राजधानी तक दौड़ लगानी शुरू कर दीl डिमांड बढ़ी तो नौकरशाही के भी कान खड़े हो गएl इसके बाद रकम मोटी होती चली गई, जिस आवेदक के पास दोनों व्यवस्था थी वह नदी पार कर गया बाकी दूसरे किनारे पर हाथ मलते रह गएl विदित हो कि जौनपुर में इतनी रिक्तियों का कारण बना था 'कोरोना काल'l इसी तरह बाराबंकी में भी संविदा वाले मेडिकल स्टॉफ से लेकर बीएमएस डॉक्टरों के भर्ती में खुला खेल चलाl इतना ही नहीं, वार्षिक रिनिवल में भी यह खेल बदस्तूर जारी हैl यहां तो प्रमोशन के लिए वार्षिक रिपोर्ट बनाने का भी पैसा लगता हैl
इसी क्रम में नकली दवाओं, प्रतिबंधित और निजी एमआरपी वाली दवाएं जौनपुर की तरह पूर्वांचल और प्रदेश के तमाम जिलों में बिंदास बिकती हैंl थोक व फुटकर मेडिकल स्टोर्स का अंतर खत्म हो चुका है, अलबत्ता यहां बैठे कर्मी ग्रामीण मरीजों के लिए 'भागवान रूपी यमराज' बन गए हैंl ड्रग अफसरों की मानीटरिंग तो कमिश्नरी और जिलों के नौकरशाह करते हैंl
-अब जौनपुर में हुई कोरम कार्रवाई की बानगी देखिए: यहां के रसूलाबाद मोहल्ले में तो निजी अस्पतालों की मानो बाढ़ आ गई हैl हर पचास मीटर पर एक अस्पताल, यानी लगभग दस नर्सिंगहोम स्वास्थ्य विभाग की नजर में आ चुके हैंl दो को तो सीज कर दिया गया हैl विभाग ने जो एफआईआर कराई है उसके मुताबिक इनकी गलती यही है कि संचालकों ने लाइसेंस को पंजीकृत नहीं कराया हैl यानी बाकी 'मानक' गया तेल लेनेl जबकि जिले में पांच सौ से ज्यादा अस्पताल हैं, इनमें से दो तिहाई बग़ैर पंजीकृत हैं, चर्चा है कि उनके संचालक दाएं हाथ से सुविधा शुल्क देते हैं और बाएं हाथ को भी पता नहीं चलता हैl इस रिपोर्ट के साथ वीडियो भी संलग्न है, जिसमें पत्रकारों के सवाल पर स्वास्थ्य अधिकारी के बयान और ताला लगाने की कार्रवाई का दृश्य नज़र आयेगाl एक- एक कमरों में कथित ऑपरेशन थियेटर हैंl मरीजों को पोल्ट्री फार्म की मुर्गियों सरीखे रखा जाता हैl' इसी तरह आवासों में अस्पताल' की परंपरा भी दशकों से चल रही है, फ़िर भी अगले दशकों तक कोई भी मोहल्ला 'नईगंज के मेडिकल हब और इंसानी स्लाटर हाऊस' वाला तमगा नहीं छीन पायेगाl क्योंकि यहां एक ही भवन में तीन अस्पताल और हाईवेज पर वाहन स्टैंड का भी रिकार्ड हैl
इस शहर में निजी अस्पतालों में हेल्पर रहे लोग प्रसूता के पेट चीरकर शिशु को लहराते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से गुरेज नहीं करतेl कुछ कथित कम्पाउंडर भी डिग्री खरीदकर फिजिशियन बनके रोज सैकड़ों मरीजों की जान से खेल रहे हैं, इनमें एक का ठीहा सिटी स्टेशन रोड पर हैl यहां अस्थाई पैथालॉजी सरीखे बड़े खेल चल रहे हैं जिनका संरक्षण विभाग के ही अफसर करते हैंl
केराकत तहसील की बानगी देखिए: चंदवक के कोईलारी बाज़ार में दवा का थोक विक्रेता फुटकर दवा बेचने के साथ परोक्ष रूप से क्लीनिक भी चलाता हैl वह बोलता है कि ऊपर पैसा फेंको और बिंदास धंधा करोl इसी तरह केराकत के स्टेशन रोड पर वाराणसी के निजी अस्पतालों में हेल्पर रहे दो सगे भाई एक कमरे में रेफरल सेंटर खोले हैं l पिछले साल इसी महीने में एक गांव की एक महिला की जान इनके ही इलाज से चली गईl आयुष्मान कार्डधारी इस महिला के पैर में फ्रैक्चर थाl इसे वाराणसी के निजी अस्पताल में तीन दिन भर्ती कराया, इसके बाद अपने यहां लाकर दो हफ्ते रखा,उसे इतनी दवा खिलाई कि उसके किडनी- लीवर की ऐसी की तैसी हो गई और वह काल के गाल का ग्रास बन गईl इसी तरह जिले के शाहगंज, बदलापुर, मडियाहूं, मछलीशहर, खेतासराय इलाकों में इलाज के धंधे चरम पर हैंl,,,,,, क्रमशः
केदार नाथ सिंह-(सलाहकार संपादक)