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 अरविंद केजरीवाल और 'आप' के लिए पंजाब की सरकार बन्द गली का आखिरी मकान! 


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-भ्रष्टाचार के खिलाफ 2012 में बनी आम आदमी पार्टी, 'भ्रष्टाचार' में ही डूब रही! केवल सत्ता का लक्ष्य रखने वाले दल के लिए राजनीति में झूठ की उम्र होती है क्षणभंगुर, वही हो रहा है केजरीवाल के साथ l

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कैलाश सिंह-

राजनीतिक संपादक

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लखनऊ/ दिल्ली,(तहलका न्यूज नेटवर्क)l नेक इरादा और दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी मन्जिल हासिल की जा सकती है, लेकिन  'बदनीयती' के साथ सार्वजनिक जीवन में मन्जिल तो मिल जाती है परंतु वह टिकती नहीं l झूठ के सहारे खासकर राजनीति में कदम रखने वालों की हालत 'आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल' जैसी हो जाती हैl अन्ना हज़ारे के आंदोलन 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन'  से निकली आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल का स्वागत दिल्ली वालों ने दिल खोलकर ऐसा किया कि 2012 में बनी इस पार्टी को 2013 में देश की राजधानी का तख़्त सौंप दिया l इसके बाद 2015 और 2020 के विधासभा चुनाव में भी यहां के मतदाताओं ने उन्हें तख़्त पर बैठाए रखा l इस दौरान केजरीवाल झूठ दर झूठ के रथ पर सवार होकर खुद को दिल्ली का मालिक समझ बैठे l शायद उन्हें लगा कि वह अजेय हैं, लेकिन उनका विजय रथ कोरोना रूपी भूकम्प के दौरान 'शीश महल' में आकर दफ़न हो गया l फरवरी 2025 में वह अपने घोड़ों समेत धराशाई हो गए और रथ दूषित यमुना के पानी में डूब गया l

अब अरविंद केजरीवाल आखिरी उम्मीद लेकर पंजाब का रुख कर लिए हैं जो उनके लिए बन्द गली का अंतिम मकान सरीखे नज़र आ रहा है l दरअसल दिल्ली हारने से पहले वह जन सहानुभूति और जनता का विश्वास खो बैठे थे l कोरोनाकाल उनके लिए अभिशाप बन गया l जनता आक्सीजन ने लिए भटकते हुए दम तोड़ रही थी और शीश महल के निर्माण में लगे केजरीवाल के प्रति जन सहानुभूति भी मर रही थी l इसी क्रम में उनके प्रति जनता का भरोसा शराब की बोतल में छटपटा रहा था, उसने तिहाड़ जेल पहुंचकर दम तोड़ा l केजरीवाल अपने राजनीतिक कुनबे के साथ बाहर आये तो दोनों को जिन्दा करने की कोशिश किए फ़िर भी 2024 के लोकसभा चुनाव में वह नहीं उठाl उन्होंने विधान सभा चुनाव से छह महीने पूर्व अनमने भाव से मुख्यमन्त्री की कुर्सी आतिशी मार्लेना को सौंप दी, फ़िर भी 'जन सहानुभूति, जन विश्वास, कट्टर ईमानदार' की छवि को जिन्दा नहीं कर सके और दिल्ली को ऐसे हार गए कि वह नेता प्रतिपक्ष लायक भी नहीं रहे l

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केजरीवाल को उनका झूठ खा गयाl दिल्ली की जनता ने उन्हें 12 साल मौका दिया लेकिन वह लगातार झूठ का रथ हांकते रहे l दिल्ली से बेआबरू होकर वह आखिरी उम्मीद लेकर पंजाब का रुख कर लिए हैं, लेकिन पंजाब की जनता अपने मुख्यमन्त्री के रूप में किसी पंजाबी को ही पसन्द करती है l रहा सवाल केजरीवाल का तो उन्हें अपने पैतृक प्रांत हरियाणा ने पहले ही खारिज कर दिया थाl  अन्ना हज़ारे के विचार से अलग होकर जुदा रास्ते पर चलने वाले केजरीवाल ने अब तक के अपने कार्यकाल में अपने ही सहयोगियों की बलि चढ़ाते हुए अपनी पार्टी की विचारधारा नहीं बनाई l इसे अपनी खेती समझकर दूसरा प्लान भी नहीं बनाया, उसे यमुना के दूषित पानी से सींचते रहे l इस बीच शराब घोटाले के आरोप की सुनामी में पार्टी की फसल अल्कोहल के छीटे से सूखने लगी और शीश महल भी भरभरा  गया l अब पंजाब की डगर इनके लिए कठिन साबित होगी l भाजपा उन्हें दिल्ली की ही तरह छोड़े रखने के रास्ते पर चल रही है ताकि 'आप और कांग्रेस' एक साथ दिल्ली की तरह ज़मीन पर नज़र आयें l

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