अनोखी लूट : पुरोहित गिरोह के निशाने पर 'लक्ष्मी पुत्र' और एआरटीओ दफ़्तर में आमजन पर निशाना!
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-शीघ्र लाखों की कमाई ने कई संस्थाओं से जुड़े लोगों को जोड़कर एक कथित पत्रकार और उसके सहयोगी ने पुरोहित गिरोह बनाया, इसके निशाने पर विभिन्न लालसा पाले लक्ष्मी पुत्र होते हैं l
-एआरटीओ दफ्तर जहां होते हैं वहां हर दिन मेला होता है l यहां लाई चने वालों को शाम तक रोटी की जुगाड़ बन जाती है, इसकी पड़ताल में तहलका-डान एक्सप्रेस की टीम ने जो खुलासे किए हैं उन्हें देख हैरानी होती है l
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-कैलाश सिंह-
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वाराणसी/जौनपुर,
(तहलका/डान एक्सप्रेस विशेष)l
चार दशक पूर्व तक प्रदेश के हर गांव में 'ड्रामा' हुआ करता था, तब कहानी के अनुसार किरदार निभाने वाले युवकों की टोली से कोई महिला तो कोई पुरुष के रोल में जब स्टेज पर आता था तो उनके घर वाले अचंभा मिश्रित ताली बजाने से नहीं चूकते थे l मसाज पार्लर वाले पुरोहित गिरोह के इस एपिशोड में दी जा रही कहानी के पात्रों की पहुंच दिल्ली, मुंबई ही नहीं पूरे देश का हर प्रांत है l बैंकाक व थाईलैंड के मसाज पार्लर इनके रोल मॉडल हैं l ये राजनीति का चस्का रखने वालों को ट्रैप करने के उसके दिमांग पर कब्जा करके रकम चूसते हैं l उसे बताते हैं कि बस टिकट का जुगाड़ कर लीजिए सांसद या विधायक बनाना हमारे बाएं हाथ का खेल हैl यह दीगर है कि ये गिरोह हमजातीय प्रत्याशी को ही वोट देते और दिलाते हैंl इतना ही नहीं, ये कई नेताओं को ऐसा चूना लगाए कि वे मुंबई से अपने घर लौटे ही नहीं l कई पूर्व नेताओं को तो आज भी गलतफहमी में डाले रखते हैंl चुनाव का सीजन न होने पर ये तीज त्योहार व धर्म की आड़ लेकर उन्हें जनमानस में पैठ बनाने के तरीके बताते हैं l यदि वह कथित नेता गरीबों का दुःख दूर करने या इलाज के बारे में सोचे भी तो ये गिरोह उसे खारिज करा देता हैl यहां दी जा रही रिपोर्ट में बानगी तो जौनपुर की है लेकिन ऐसे गिरोह देशभर में फैले हैं l
अब पुरोहित गिरोह का कारनामा देखिए- अपने धन्धों से जुड़ी व रचित कहानी के अनुसार इसके किरदार ड्रेस बदलकर जब बड़े समारोह के स्टेज पर नमूदार होते हैं तो लोग श्रद्धा और सम्मान से देखते हैंl इन्हें चंदे की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि लक्ष्मी पुत्र से उन्हें सालभर का पैकेज लाखों में मिल चुका होता है l मसाज पार्लर के नाम पर गरम गोश्त का धंधा करने वाला ये गिरोह सरकारी कारिंदों को भी जोड़कर रखता है l
इसी तर्ज पर दूसरी तरफ़ एआरटीओ दफ्तर में सबकुछ शासनादेश के अनुसार होता नज़र आता है लेकिन विभागीय कर्मचारी को खोजने पर प्राइवेट कर्मचारी ही मिलेंगे l कई अनुभवी और पुराने दलाल यहाँ सुरक्षा मुहैया कराते हैं l बानगी देखिए, कई बार गिरफ़्तार हो चुका एक दलाल हर दिन दो हजार रुपये के लिफ़ाफ़े इसलिए लेता है कि वह विभागीय अफ़सरों को राजनीतिक सुरक्षा देगा l इसी तरह कई कथित पत्रकार पुलिस व प्रशासन से बचाने के नाम पर लिफ़ाफ़ा लेते हैं, सबसे निचले पायदान पर काले कोट वाले कथित वकील होते हैं l उन्हें चार या छह केस ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने वाले मिल जाते हैं तो दिनभर का खर्च निकल जाता है, क्योंकि इनकी आमदनी से दफ़्तर में बाबू बनकर बैठे निजी कर्मी आधा हिस्सा वसूल कर लेते हैं l कोठी, ट्रक, कार, ड्राइविंग स्कूल के मालिक बन चुके ये कथित कर्मचारी आमजन को बताते हैं कि अभी सर्वर डाउन है, तब लाचार होकर दूर से आया व्यक्ति बाहर घूम रहे दलालों या कंप्यूटर, फ़ोटो स्टूडियो, जिराक्स कॉपी की दुकान सजाए बैठे लोगों के जाल में फंसता है, फिर तो उसका काम एक ही दिन में हो जाता हैl वर्किंग आवर खत्म होने के बाद या कई बार रात में वसूली गई रकम का हिसाब होता है लो यदि अफ़सरों को जल्दी जाना होता है तो एवरेज हिसाब से उसका लिफ़ाफ़ा पहले दे दिया जाता है, वह फ़ाइलों पर दस्तखत भी कई बार रात में तब करता है जब दफ़्तर में बाहर से ताला बन्द लेकिन भीतर काम जारी होता हैl हिसाब में पूरी ईमानदारी बरती जाती है l एक अधिकारी की यह तीसरी नौकरी है ली बाकी अगले एपिशोड में,, क्रमशः
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